June 1, 2025

आम जनता की आवाज

सच का सारथी

चारणभाटगिरी और आम जनता की आवाज की अनसुनी… मीडिया का बदलता स्वरूप … वरिष्ठ पत्रकार दिनेश पांडे की वॉल से

वरिष्ठ पत्रकार दिनेश पांडे…की वॉल से
चंपावत….
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर जिला सूचना सभागार में
जिलाधिकारी नवनीत पाण्डे की अध्यक्षता में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें पुलिस अधीक्षक अजय गणपति, नवागत सीडीओ जी एस खाती जिला सूचना अधिकारी धीरज कार्की सहित अधिकारी और तमाम पत्रकार मौजूद रहे।

हांलाकि उस दौरान मैंने भी अपने विचार रखे लेकिन समय को ध्यान में रखते हुए उनको संक्षिप्त रूप में रखा गया। अब इस व्हाटसप मैसेज के जरिए आप सभी साथियों को पुनः अपने विचारो से अवगत कराने का मन हुआ।
साथियों जैसा कि आप जानते है कोलकाता से प्रकाशित पहले हिंदी समाचार पत्र उदंत मार्तंड का प्रथम प्रकाशन 30 मई 1926 को हुआ। तब से इस तिथि को हिंदी पत्रकारिता दिवस के तौर पर मनाया जाता है और इस दिन को हिंदी पत्रकारिता के दौर में उतार चढाव के साथ ही पत्रकार पेशे की गरिमा में आ रही गिरावट के मूल्यांकन और आत्मावलोकन के तौर पर भी देखा जाता है।
दो सौ साल के इस कालखंड में
तब से अब तक हिंदी पत्रकारिता के दौर में काफी बदलाव आया है। नूतन तकनीक के चलते डिजीटल दौर में कुछ चीजें आसान हुई है तो कुछ दिक्कतें भी है। प्रिंट मीडिया के साथ ही इलैक्ट्रानिक और सोशल मीडिया के जरिए सूचना और समाचारों के एक दूसरे तक पहुचने की रफ्तार तेज हुई है।
बाबजूद इसके लोगों की नजर में मिडिया की साख पर आए दिन बट्टा लग रहा है। वजह एक नही अनेक है। प्रमुख वजह पत्रकारिता का सत्ता यानि शासन प्रशासन और बड़े व धनवान लोगों की चारणभाटगिरी और आम जनता की आवाज को अनसुनी करना है। पहले पत्रकार विपक्ष की तरह ही सत्ता और शासन से सवाल करता था और इसके उलट वह आज सत्ता का बचाव कर विपक्ष को घेरने का काम करता है।
जिसके कारण आज वंचित शोषित पीड़ित और आम जनमानस की आवाज नेपथ्य में है। रोजगार,महंगाई, रिश्वत और कमीशन खोरी, विकास कार्यों की घटिया गुणवत्ता आदि मसले पर पत्रकार गूंगा बहरा बना है।
वजह साफ है कि वह भी किसी न किसी तौर पर अपनी सेंटिग गेटिंग में मस्त है।
हांलाकि आज भी ईमानदारी और गरिमा के साथ काम करने वाले पत्रकार मौजूद है लेकिन उनकी तादाद काफी न्यून है।
दूसरा जो प्रमुख समाचार पत्र या चैनल है उनके यहां क्या छपना है क्या नही यह उनके संपादक तय करते है। इस दौर में शासन प्रशासन के खिलाफ यदि कोई संवाददाता समाचार आदि भेजता भी है तो उसे छापना तो दूर उसे डांट पड़ती है और कहीं तो नौकरी से निकालने तक की धमकी मिलती है।
बाबजूद इसके लोगों की नजर में मिडिया की साख किस तरह सुधरे इस पर ध्यान देना होगा। सबसे पहले स्वत: के गिरेबांन में झांकने की जरूरत है। हम अपने स्तर से ऐसा कोई कार्य न करे जिससे स्वयं के साथ ही पत्रकार बिरादरी पर बट्टा लगे।
अब आते है चंपावत जिले की पत्रकारिता पर। आज समाचार पत्रों के साथ ही पोर्टल यूट्यूब से जुडे करीब पचास से ज्यादा लोगों के पास पत्रकारिता का तमगा है।
लेकिन कितने लोग ईमानदारी और पेशे की गरिमा के साथ कार्य कर रहे है ये आप भी जानते है। बमुश्किल इनकी संख्या अंगुलियों में गिनने वाली है।
साथ ही इसमें काम करने वाले लोगों का बौद्धिक स्तर क्या है यह भी विचारणीय बिंदु है।
कट पेस्ट कर समाचार ज्यों का त्यों लगाने वालों की तादाद में यहां कोई कमी नही है। निदेशक का पदनाम पूछने वाले भी हमारे बीच है।बिना किसी समाचारपत्र,पोर्टल से जुडे लोग भी पत्रकार संगठनों से जुड़े हुए है।
पत्रकारों के नाम पर तरल गिफ्ट ——–लेने वाले भी हमारे बीच के लोग है। भले ही वह तरल से दूर रहें लेकिन अन्य पत्रकारों को उनसे वंचित रखना उन्हें नहीं सुहाता है।
दरअसल उपचुनाव से पहले इस जिले में पत्रकारिता में गिरावट का ग्राफ कम था। उपचुनाव में जब कतिपय पत्रकारों को लिफाफे बंटे तो धीरे धीरे ग्राफ बढने लगा।
इस बीच सभी पत्रकारों को एक संगठन के साथ लाने की पहल हुई और चुनाव के बाद संगठन भी बना।
फिर शपथ के नाम वसूली के आरोप लगे तो आरोप लगाने वाले पत्रकारों को ही संगठन से हटा दिया।
इसके बाद तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष के पति के साथ संगठन से जुडे दो पत्रकारों का विज्ञापन मसले पर विवाद हो गया और जब मामला कोतवाली पहुचा तो जिप अध्यक्ष पति ने उन दो पत्रकारों के अलावा संगठन के अध्यक्ष को भी कठघरे में खड़ा कर दिया। फिर पत्रकारों को अपना सा मुह लेकर लौटना पड़ा।
संगठन से जुड़े लोगों की हरकतों और मनमानी से स्वयं मैं भी संगठन से हट गया।
उसके बाद एक और संगठन चंपावत जनर्लिस्ट एसोशियेशन अस्तित्व में आया। लेकिन फिर मैने किसी भी संगठन से जुड़ना उचित नही समझा और वर्तमान में अब किसी संगठन से कोई जुड़ाव नही है।
बीते दिनों निकाय चुनावों में भी विज्ञापन और समाचारों के नाम पर घालमेल की चर्चा रही ।
यहां तक कि बिना विज्ञापन और समाचार वाले भी दस हजारी का तमगा पा गए।
पिछले दिनों फिर चल्थी में खनन के मसले को लेकर पत्रकारों के नाम पर वसूली का आरोप वाला मामला भी सामने आया।
ये तो ऐसे मसले थे जिन पर गाहे बगाहे चर्चा हुई वैसे अंदरखाने कौन क्या कर रहा है वे तो उनकी अंतर आत्मा ही जाने।
कुल मिलाकर येन केन प्रकारेण
पत्रकारिता की आड़ में कमाई करने की प्रवृति ने जिले में इस पेश की गरिमा में गिरावट तो आई ही है।
बाकी जिले के सभी पत्रकार यह तो जानते ही है कौन कितने गहरे पानी में है।
एक बार आप सभी को हिंदी पत्रकारिता दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएँ ।

*दिनेश चंद्र पांडेय, संवाददाता पीटीआई (भाषा) चम्पावत उत्तराखंड*

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