April 24, 2025

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प्रमुख वन संरक्षक का निरीक्षण कहा चंपावत में पर्यटन की अपार संभावना

प्रमुख वन संरक्षक (HoFF) डॉ. धनंजय मोहन का चम्पावत में तीन दिवसीय निरीक्षण संपन्न
चंपावत।
प्रमुख वन संरक्षक (HoFF) डॉ. धनंजय मोहन द्वारा चम्पावत वन प्रभाग में तीन दिवसीय निरीक्षण के दौरान कई महत्वपूर्ण स्थलों का भ्रमण किया। इस दौरान उन्होंने मॉडल क्रू स्टेशन (Incident Command Post) तथा बस्तिया पौधशाला का निरीक्षण किया।

निरीक्षण के दौरान डॉ. मोहन ने फील्ड में कार्यरत कर्मचारियों से संवाद कर उन्हें सजगता और सतर्कता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के निर्देश दिए। उन्होंने वनाग्नि नियंत्रण हेतु प्रयोग में लाए जा रहे फायर उपकरणों और व्यवस्थाओं का गहन अवलोकन किया।
इको-टूरिज्म में व्यापक संभावनाएं
रविवार को आज प्रभागीय वनाधिकारी सभागार में प्रेस वार्ता के दौरान प्रमुख वन संरक्षक ने बताया कि चम्पावत वन प्रभाग में इको-टूरिज्म के क्षेत्र में व्यापक संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि धार्मिक पर्यटन, साहसिक पर्यटन तथा प्रकृति आधारित पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में विभाग कार्य कर रहा है। मायावती क्षेत्र में बर्ड वॉचिंग की प्रचुर संभावनाएं चिन्हित की गई हैं और भविष्य में मायावती एवं अन्य स्थलों पर बर्ड फेस्टिवल के आयोजन की योजना है, जिससे स्थानीय होम स्टे और रोजगार को बढ़ावा मिलेगा।

पंचेश्वर क्षेत्र में एंग्लिंग पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु छोटे-छोटे नदी-नालों का संरक्षण कर महाशीर मछली के लिए सुरक्षित और अनुकूल ब्रीडिंग वातावरण विकसित करने की योजना है।

वनाग्नि नियंत्रण के लिए आधुनिक तकनीक और नवाचार

डॉ. मोहन ने बताया कि उत्तराखंड ने “Gross Environmental Product” (GEP) के कॉन्सेप्ट को अपनाकर आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को भी प्राथमिकता दी है। उन्होंने कहा कि इस फायर सीज़न में प्रदेश में कोई भी बड़ी वनाग्नि की घटना सामने नहीं आई है,जो वन विभाग की गंभीरता एवं नवाचारों का प्रतिफल है। वनाग्नि नियंत्रण के लिए दो फोकस क्षेत्रों पर कार्य किया जा रहा है, जंगलों में आग लगने से रोकथाम और आग लगने की स्थिति में त्वरित प्रतिक्रिया (Response Time में कमी) इसके लिए उत्तराखंड फॉरेस्ट फायर ऐप विकसित किया गया है, जिससे ऐप आधारित सूचना व अलर्ट प्रणाली संचालित की जा रही है। देहरादून में स्थापित Integrated Control Room के माध्यम से प्रदेश भर की निगरानी की जाती है। यह ऐप आम नागरिकों के लिए भी उपलब्ध है, जिससे जनभागीदारी को बढ़ावा मिल रहा है।

वन विभाग ने मौसम विभाग के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किया गया है, जिसके तहत विभाग को Customised Weather Reports प्राप्त हो रही हैं। इन विशेष मौसम रिपोर्ट्स की सहायता से जंगलों में आग लगने की संभावनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा रहा है, जिससे फील्ड टीम को समय रहते तैयार किया जा सके। यह तकनीकी सहयोग वनाग्नि की रोकथाम और त्वरित रिस्पांस में एक अहम भूमिका निभा रहा है।

डॉ. मोहन ने जानकारी दी कि वनाग्नि में अत्यधिक ज्वलनशील भूमिका निभाने वाले चीड़ पिरुल के बेहतर प्रबंधन हेतु सरकार द्वारा पिरुल की खरीद दर को ₹3 से बढ़ाकर ₹10 प्रति किलो कर दिया गया है। इस निर्णय से न केवल जंगलों से पिरुल हटाकर आग की घटनाओं में कमी आएगी, बल्कि इससे स्थानीय लोगों की आमदनी में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी। यह एक बहुपक्षीय लाभ देने वाली पहल है जो वन संरक्षण और आजीविका संवर्द्धन दोनों को साधती है।

वनाग्नि रोकथाम में जन सहयोग की अपील

प्रमुख वन संरक्षक ने स्थानीय नागरिकों और ग्रामीणों से अपील की कि वे वनाग्नि की घटनाओं को रोकने में विभाग का सहयोग करें। उन्होंने विशेष रूप से अनुरोध किया कि यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर जंगलों में आग लगाने की गतिविधि में संलिप्त पाया जाए, तो उसकी सूचना तुरंत वन विभाग को दें ताकि उसके विरुद्ध सख्त कार्यवाही की जा सके। जन सहयोग से ही वनाग्नि जैसी आपदाओं पर प्रभावी नियंत्रण संभव है।

*स्थानीय समुदायों को किया जा रहा जागरूक*
प्रदेश भर के सफल मॉडल्स का अध्ययन कर ग्रामीणों को Exposure Visits पर भेजा जा रहा है ताकि वे वन संरक्षण के महत्व को समझ सकें। वन विभाग द्वारा प्रचार-प्रसार वाहन के माध्यम से जनजागरूकता कार्यक्रम भी संचालित किए जा रहे हैं।

इसके अतिरिक्त, प्राकृतिक जल स्रोतों और नौलों को चिन्हित कर तीन वर्षीय परियोजनाओं के माध्यम से मृदा संरक्षण, पौधारोपण तथा जल संरक्षण के कार्य किए जा रहे हैं, जिनकी सतत मॉनिटरिंग की जाएगी।
चंपावत वन प्रभाग की पहल
प्रभागीय वनाधिकारी नवीन पंत के अनुसार, प्रत्येक क्रू स्टेशन पर 3 लीटर क्षमता वाले वॉटर हाइड्रेशन बैग्स उपलब्ध कराए गए हैं जो बैकपैक के रूप में उपयोग होते हैं, जिससे फायर फाइटिंग के दौरान दोनों हाथ मुक्त रहते हैं। साथ ही, साल मिश्रित वनों में विशेष डिज़ाइन की गई फायर रेक का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे सूखे पत्तों की सफाई तेज़ व प्रभावी ढंग से की जा रही है। यह पहल वनाग्नि नियंत्रण को और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में एक सराहनीय कदम है।

इस दौरान मुख्य वन संरक्षक (कुमाऊं) डॉ. धीरज पांडे, SDO नेहा सौन भी मौजूद रहे।

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